चीन के साथ हाथ मिला कर ईरान ने भारत को चाबहार रेल परियोजना से बाहर किया. अब देखते है ईरान ने हाल ही में भारत को बड़ा झटका देते हुए चाबहार रेल परियोजना से बाहर क्यों किया.

ईरान ने हाल ही में भारत को बड़ा झटका देते हुए चाबहार रेल परियोजना से बाहर कर दिया है. ईरान ने घोषणा किया है कि वह अब अकेले ही इस परियोजना को पूरा करेगा. भारत के लिए ईरान का यह फैसला सामरिक और रणनीतिक तौर पर बड़ा झटका माना जा रहा है.

गौरतलब है कि ईरान और चीन के बीच 400 बिलियन डॉलर की एक महाडील होने वाली है. माना जा रहा है कि इस डील के चलते ही ईरान ने चाबहार परियोजना से भारत को बाहर कर दिया है. ये रेल परियोजना चाबहार पोर्ट से जहेदान के बीच बनाई जानी है.

क्या है कारण?

ईरान ने भारत द्वारा प्रोजेक्ट की फंडिंग में देरी किए जाने को इसकी वजह बताया है. ईरान ने आरोप लगाया है कि समझौते के चार साल बीत जाने के बाद भी भारत इस परियोजना के लिए फंड नहीं दे रहा है. ऐसे में अब वह खुद ही इस परियोजना को पूरा करेगा. चीन से समझौता होने के बाद ईरान के मूलभूत ढांचे से जुड़े प्रोजेक्ट्स बीजिंग ही पूरे करेगा.

क्या है चाबहार रेल परियोजना?

इस परियोजना के तहत ईरान के चाबहार पोर्ट से लेकर जहेदान इलाके तक रेल परियोजना बनायी जानी है. इस रेल परियोजना को अफगानिस्तान के जरांज सीमा तक बढ़ाए जाने की भी योजना है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस परियोजना को मार्च 2022 तक पूरा किया जाना है. साल 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ईरान यात्रा के दौरान चाबहार समझौते पर हस्‍ताक्षर हुआ था. पूरी परियोजना पर लगभग 1.6 अरब डॉलर का निवेश होना था. इस परियोजना को पूरा करने के लिए इरकान के इंजीनियर ईरान गए भी थे.


ईरान अकेला ही इस परियोजना को पूरा करेगा

ईरान के रेलवे ने कहा है कि वह बिना भारत की मदद के ही इस परियोजना पर आगे बढ़ेगा. इसके लिए वह ईरान के नैशनल डिवेलपमेंट फंड 40 करोड़ डॉलर की धनराशि का इस्‍तेमाल करेगा. इससे पहले भारत की सरकारी रेलवे कंपनी इरकान इस परियोजना को पूरा करने वाली थी. यह परियोजना भारत के अफगानिस्‍तान और अन्‍य मध्‍य एशियाई देशों तक एक वैकल्पिक मार्ग मुहैया कराने की प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए बनाई जानी थी.

भारत ने चाबहार के विकास पर अरबों रुपये खर्च किए

भारत ने ईरान के बंदरगाह चाबहार के विकास पर अरबों रुपये खर्च किए हैं. चाबहार व्यापारिक के साथ-साथ रणनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण है. यह चीन की मदद से विकसित किए गए पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट से महज 100 किलोमीटर दूर है.


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