पढ़े और जाने। रुक सकती थी 2013 की केदारनाथ की त्रासदी। 2004 में ही पता चल गया था कि कुछ सालो बाद ऐसा होगा आखिर क्यों नहीं रोका जा सका?

2013 में उत्तराखंड मैं आई त्रासदी मैं हजारों लोगों की जान गई क्या इसको बचाया जा सकता था पूरी कहानी  एक - एक कर के जानिए

2013 में आई उत्तराखंड (केदारनाथ) त्रासदी को कौन नहीं जानता है जिसमें हजारों श्रद्धालुओं ने अपनी जान गवाई और ना जाने कितने लोगों ने अपना घर परिवार सबको गवा दिया। आखिर ऐसा क्या हुआ की इतनी भयानक त्रासदी 2013 में आई इसके बारे में जानते है
दैनिक भास्कर के एडिटर श्री लक्ष्मी पंत जी ने एक रिपोर्ट तैयार की आइए जानते हैं वह क्या है

बात है 2004 की है केदारनाथ के कपाट कुछ ही दिन बाद खुलने वाले थे। उस समय पंत जी दैनिक जागरण के देहरादून संस्करण में विशेष संपादक हुआ करते थे और हिमालय और ग्लेशियर उनकी जिंदगी का एक हिस्सा थे इसी कारण से जब भी किसी पहाड़ से जुड़ी हलचल की जानकारी मिलती तो पंत जी उसकी जड़ तक पहुंचते और सच को सबके सामने लाते हैं ऐसी ही एक खबर का पता चला कि केदारनाथ के ठीक ऊपर स्थित

चोराबारी ग्लेशियर पर ग्लेशियोलॉजिस्ट की एक टीम रिपोर्ट तैयार कर रही थी पंत जी देहरादून से सीधा केदारनाथ जा पहुंचे केदारनाथ से चोराबारी ग्लेशियर कुछ ही दूरी पर स्थित है जब वह वहां पहुंचे तो उनकी मुलाकात वाडिया इंस्टीट्यूट के ग्लेशियोलॉजिस्ट डॉ. डीपी डोभाल से हुई जो उस समय झील की देख रेख के प्रमुख थे उस समय झील का स्तर 4 मीटर के आस पास होगा पंत जी ने डोभाल जी से पूछा कि क्या इससे कभी भविष्य में केदारनाथ मंदिर को कुछ खतरा हो सकती है डोभाल जी थोड़ी देर शांत रहे लेकिन उसके बाद उन्होंने कहा कि यदि इस झील का स्तर 4 मीटर से बढ़कर 11 से 12 मीटर तक पहुंच जाए तो यहां पर बहुत बड़ी तबाही आ सकती हैं यह सुनकर पंत जी चौक गए उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था।
केदारनाथ के ऊपर पल रहे खतरे ने पंत जी को चौकन्ना कर दिया उन्होंने एक रिपोर्ट तैयार की और अपने संपादक अशोक पांडे जी को सौंप दी।

पंत जी ने पांडे जी से कहा कि यह सब डॉ डोभाल जी की रिपोर्ट के अनुसार है पांडे जी ने यह रिपोर्ट कानपुर हेड ऑफिस को फोन करके दे दी।


1 अगस्त के दिन फैसला हुआ की खबर बकेयी बड़ी है और फ्रंट पेज पर लीड बनाई गई खबर छपने के बाद चोराबारी ग्लेशियर तो नहीं फटा लेकिन मेरे ऑफिस पर सवालों का पहाड़ खड़ा हो गया यह रिपोर्ट किसने बनाई, कैसे बनाई, बहुत सारी बातें हुई और आखिरकर राजनीतिक दबाव के चलते मुझे वहां से निकाल दिया गया जिसके बाद पंत जी राजस्थान चले गए और मामले को वहीं दबा दिया गया लेकिन चोराबारी ग्लेशियर मैं पल रहा खतरा धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था और आखिरकर वहीं हुआ जिसका पंत जी को डर था और जो पंत जी ने सोचा था 9 साल बाद 16 जून 2013 को जब सच दुनिया के सामने आए तब तक बहुत देर हो चुकी थी 16 जून का दिन केदारनाथ और पूरे उत्तराखंड के लिए बहुत भयानक साबित हुआ 400 मीटर लंबी 200 मीटर चौड़ी और 20 मीटर गहराई वाली झील सिर्फ 10 मिनिट में पूरी खाली हो गई और  हजारों लोगों को आपनी जान से हाथ धोया।
जैसे ही पंत जी को पता चला वह सीधे वहां पहुंचे यह सब देख कर बहुत दुख हुआ उन्होंने कहा कि मैं तो जीत गया पर यह मानवता की बहुत बड़ी हार हुई इस तबाही ने मौत और जिंदगी सबके के मायने ही बदल दिया।

पंत जी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री विजय बहुगुणा जी से देहरादून सचिवालय में जा कर सवाल किया इन हजारों मौत का जिम्मेदार कौन है क्या आपदा को रोका जा सकता था इस पर उनका जवाब था कि यह इंसानी नहीं दैवीय आपदा है।

कुछ प्रमुख जानकारी -

त्रासदी हुई - 16 जून 2013
ऑपरेशन - ऑपरेशन राहत ( वायुसेना द्वारा)
सर्वाधिक प्रभावित जिला- रुद्रप्रयाग
स्त्रोत - चोराबारी ग्लेशियर
मृत्यु - 10000 से अधिक लोगों की
मुख्यमंत्री - विजय बहुगुणा
राज्यपाल- अजीज कुरैशी
प्रधानमंत्री- मनमोहन सिंह


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