रेलवे का निजीकरण किस प्रकार होगा? चलो देखते है इससे लोगो को क्या क्या फायदा और क्या क्या नुकसान होगा?
भारतीय रेलवे (IR) भारत की राष्ट्रीय रेलवे प्रणाली है जो रेल मंत्रालय द्वारा संचालित है. भारतीय रेलवे को केंद्र सरकार, सार्वजानिक कल्याण को बढ़ाने के लिए चलाती है ना कि लाभ कमाने के उद्येश्य के रूप में. भारतीय रेलवे, मार्च 2019 तक 67,415 किमी के मार्ग की लंबाई के साथ आकार में दुनिया के चौथे सबसे बड़े रेलवे नेटवर्क का प्रबंधन करता है.
सरकार के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय रेलवे को अगले 12 वर्षों के लिए 50 लाख करोड़ रुपये की जरूरत होगी. जबकि सरकार के पास इतना रूपया केवल इस सेक्टर पर खर्च करने के लिए नहीं है.
भारत में रेल का चलना अंग्रेजों की देन है और दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवाओं में से एक भारतीय रेलवे 1853 में अपनी स्थापना के समय से सरकार के हाथों में रही है. लेकिन अब सरकार इसमें निजी क्षेत्र को भी शामिल कर रही है.
आइये इस लेख में इसके फायदे और नुकसान के बारे में बात करते हैं;
रेलवे का निजीकरण किस प्रकार होगा?
वर्तमान में देश में 13 हजार ट्रेनें चल रहीं हैं और डिमांड और सप्लाई के बीच समानता लाने करने के लिए 7 हजार ट्रेनें और चलायीं जायेंगीं. वर्तमान में इस ट्रेनों का रेगुलेशन और मैनेजमेंट इंडियन रेलवे ही करता है लेकिन अब मैनेजमेंट का काम प्राइवेट प्लेयर्स के हाथ में चला जायेगा.
इसी दिशा में कदम उठाते हुए भारत सरकार ने इंडियन रेलवे के निजीकरण की दिशा में कदम उठाते हुए 109 रुट्स पर 151 यात्री ट्रेनें चलाने के लिए प्राइवेट पार्टीज को इनविटेशन दिया है. इन रूट्स पर चलने वाली ट्रेनें कम से कम 16 कोच की होंगी और इनकी अधिकतम रफ्तार 160 किलो मीटर/ घंटा होगी.
इंडियन रेलवे ने कहा है कि वह 35 साल के लिए ये परियोजनाएं निजी कंपनियों को देगा. हालाँकि इन सभी ट्रेनों में ड्राइवर और गार्ड भारतीय रेलवे के होंगे.
निजी प्लेयर्स, भारतीय रेलवे को ट्रांसपेरेंट राजस्व प्रक्रिया के माध्यम से निर्धारित सकल राजस्व में हिस्सेदारी का भुगतान निर्धारित ढुलाई शुल्क, वास्तविक खपत के अनुसार ऊर्जा शुल्क का भुगतान करेंगे.
इस निजीकरण के पीछे भारतीय रेलवे का उद्देश्य रेलवे को लेट-लतीफी से छुटकारा दिलाना, यात्रियों की सुरक्षा बढ़ाना,यात्रियों को विश्व स्तरीय यात्रा का अनुभव प्रदान करना और सभी यात्रियों को कन्फर्म टिकट उपलब्ध कराना है.
रेलवे के निजीकरण से लाभ और नुकसान:
1. सरकार का तर्क है कि निजी भागीदारी के तहत बनने वाली सभी ट्रेनें ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजेक्ट के तहत बनेंगी जिससे रोजगार पैदा होगा जो कि एक बहुत छोटा तर्क है क्योंकि ट्रेनें बिना निजी सेक्टर को दिए बिना भी ‘मेक इन इंडिया’ प्रोजेक्ट के तहत बन सकतीं हैं.
2. ट्रेनों का रखरखाव, निजी क्षेत्र द्वारा किया जायेगा जिससे उनमें साफ सफाई रहेगी.
3. निजी क्षेत्र में जाने से ट्रेनें समय पर पहुंचेगीं.यह तर्क भी बहुत मजबूत नहीं है क्योंकि सरकार उन कमियों को दूर कर सकती है जिसकी वजह से ट्रेनें लेट होतीं हैं. निजी प्लेयर ऐसा क्या करेंगे कि ट्रेनें लेट नहीं होंगी?यदि निजी प्लेयर्स ट्रेनें लेट होने से रोक सकते हैं तो फिर सरकार क्यों नहीं?
4. यात्रियों को बेहतर सुरक्षा मिल सकेगी क्योंकि निजी प्लेयर ज्यादा पैसा खर्च करके नयी तकनीकी लायेंगे. इस तर्क में थोडा दम है क्योंकि सरकार का फिस्कल डेफिसिट बढ़ता जा रहा है और सरकार के पास और अधिक धन नहीं है.
5. टिकटों के बीच डिमांड और सप्लाई के बीच के अंतर को ख़त्म करने में मदद मिलेगी. क्योंकि ट्रेनों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी.
6. इन ट्रेनों को इस तरह से बनाया जायेगा ताकि इनकी मैक्सिमम स्पीड 160 किमी रखी जा सके.इससे लोगों के समय की बचत होगी.
7. रेलवे के निजीकरण से सबसे बड़ा नुकसान यह है कि इससे बड़ी संख्या में सरकारी नौकरियां ख़त्म होंगीं क्योंकि निजी प्लेयर्स कम लोगों से ज्यादा काम करवाकर लाभ अधिकतम करना पसंद करेंगे.
8. इस बात की भी संभावना है कि प्राइवेट ट्रेनों को क्लियर सिग्नल दिया जाये जिससे वो ट्रेनें समय पर पहुंचेंगी और सरकारी ट्रेनें स्टेशन के बाहर खड़ी होकर सिग्नल का इंतजार ही करतीं रहेंगीं.
9. निजीकरण का सबसे भयंकर प्रभाव रेलवे के किरायों को बढ़ोत्तरी का होगा, जिसे गरीब और मध्यम वर्ग बर्दाश्त नहीं कर पायेगा.
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